किसी राष्ट्र के सांस्कृतिक वैभव का परिचायक वहाँ का लोक साहित्य होता है, जिसमें उस राष्ट्र के संस्कार, परंपराएँ, जीवनादर्श, उत्सव-विषाद, नायक-नायिकाएँ, ऋतु गीत, विवाह गीत, भजन, राजनैतिक-सामाजिक गीत, विरह गीत इत्यादि को वाणी प्रदान की जाती है। यूँ तो प्रायः प्रत्येक देश में लोक साहित्य की एक सुदीर्घ परंपरा प्राप्त होती है, परन्तु अधिकांश देशों का लोक साहित्य एकाध भाषाओं अथवा बोलियों तक सीमित रहता है। भारतवर्ष इस मामले में सौभाग्यशाली है क्योंकि इस देश की कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी की परंपरा ने इसे बोलियों एवं भाषाओं का एक विस्तृत कोश प्रदान किया है, जिसमें लोक साहित्य के अलबेले रंग-रूप क्रीड़ा करते हुए देखे जा सकते हैं। कहना न होगा, भोजपुरी भी इस कोश की अक्षय मंजूषा है।१