लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।१
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
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संदर्भ-
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लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप से अभिप्राय उस प्रणाली से है, जिसमें स्त्री-पुरुष बिना किसी कानूनी अथवा सामाजिक रीति के, केवल समझौते के आधार पर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर किसी प्रकार के बंधन न होने के बावजूद स्त्री-पुरुष के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध होते हैं अर्थात उनका शारीरिक संबंध भी होता है। परंतु वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वस्तुतः इस संबंध में दोनों यह मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं और स्वतंत्र विचार के पढ़े-लिखे लोग हैं अतः विवाह जैसी औपचारिक रस्म की आवश्यकता नहीं है। भूमंडलीकरण तथा बाजारीकरण के इस दौर में हमारी पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना में काफी परिवर्तन हुए हैं। हमारी मान्यताओं में काफी बदलाव आया है। आज स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी) संबंध के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। पहले संयुक्त परिवार का विघटन, फिर एकल परिवारों की टूटन और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध का अस्तित्व में आना हमारी परिवार तथा विवाह संस्था के विचलन और उसके प्रति हमारी मानसिकता में आये परिवर्तन को दर्शाते हैं।
लेखक के विषय में- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोधरत कृष्णकुमार अग्रवाल का नाम समीक्षाओं, शोधपत्रों तथा साहित्यिक लेखन के क्षेत्र में विशेष रूप से जाना जाता है। उनके शोध का विषय है- इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कहानी: दृष्टि और सरोकार। |
संदर्भ-
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